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माता छिन्नमस्ता

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<h3><strong>माता छिन्नमस्ता</strong></h3>

माता छिन्नमस्ता

जैसा कि आपको ज्ञात है कि हमारा संस्थान श्रीवृद्धि आपके लिए प्रति दिन भक्तिमार्ग से जुड़ी हुई वस्तु कथा इत्यादि नवीन व मांगलिक जो व्यक्ति के जीवन में एक नवीन उत्तेजना का प्रादुर्भाव करती है। ऐसी ही हम एक नवीन माता छिन्नमस्ता की कथा को लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हुए है।

माता भगवती छिन्नमस्ता का श्रीधाम ‘झारखण्ड’ ‘रांची’ से 80 किलोमीटर दूर ‘रजथा रामगढ़’ में स्थित है। माॅ भगवती की जन्म तिथि वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनायी जाती है। माॅ छिन्नमस्ता अन्यत्र नामों से भी प्रसिद्ध है। जैसे-

  • 1. छिन्नमुण्डा
  • 2. छिन्नमुण्डधरा
  • 3. आरक्ता
  • 4. रक्तनयना
  • 5. परक्तवान परायिणा
  • 6. बज्रवराही
  • 7. प्रयन्ड चण्डिका।

यह देवी त्रिगुणमयी हैं। सात्विक, राजसिक तथा तामसिक माता भगवती छिन्नमस्ता के जो भैरव हैं। वह ‘क्रोध भैरव’ है।

यह माता जगदम्बा साधक को अतिशीघ्र सिद्धि प्रदान करती हैं तथा सर्वस्व विजयी कराकर साधक को सदैव स्थिर रहने वाली लक्ष्मी एवं सम्पत्ती प्रदान करती हैं। यह जगदम्बा दश महाविद्याओं में से प´यम महाविद्या हैं।।

ॐ ह्रीं ह्रीं देवी चंडमुंडे प्रसन्न प्रसीद प्रसीद ॐ नमो नमः 

माॅ छिन्नमस्ता की कथा

पौराणिक कथाओं तथा नारद पंचराप्त के अनुसार एक समय जगदम्बा माता पार्वती अपनी दो सहचरियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने के लिए आयीं थीं। उसी समय स्नान करते वक्त माता पार्वती काम से उत्तेजित हो उठीं। काम की उत्तेजना के कारण माता भवानी का तन (शरीर) काला पड़ गया। उसी समय उनकी सहचरी ‘डाकिनी’ तथा ‘शाकिनी’ क्षुधा को प्राप्त हुई। उन्होंने माता रानी से भोजन के लिए प्रार्थना की परन्तु माता ने उन्हें मना कर दिया तथा कैलास न जाकर माता से ही क्रोध करने लगीं और कहने लगीं कि, हे माता तुम समस्त जगत का भरण-पोषण करती हो किन्तु इस समय आप हमें भोजन न देकर हमारा तिरस्कार तथा अपमान कर रहीं हैं। इस तरह अपनी सहचरियों के मुख से इस प्रकार के शब्द सुनकर माता ने अपने खड्ग से अपनी तलवार से अपनी गर्दन को काट दिया। तदुपरान्त माता के धड़ (शरीर) से रक्त की तीन धाराऐं उत्पन्न हुईं। एक धारा स्वयं माता भगवती के श्रीमुख में गई तथा दो धाराऐं ‘डाकिनी’ तथा ‘शाकिनी’ के श्रीमुख में प्रवेश किया तथा काम की हृदय में उत्तेजना होने के कारण माता ने पत्नी ‘रती’ सहित कामदेव को बंदी बना लिया तथा उन दोनों के शरीर पर जगदम्बा आरूण हो गयीं।

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माँ छिन्नमस्ता 2100 पाठ

माँ छिन्नमस्ता के रूप व स्वभाव को देखते हुए इनकी पूजा तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या अर्जित करने व अपने शत्रुओं का नाश करने के उद्देश्य से की जाती हैं। आम भक्तों को केवल इनकी उपासना करने की सलाह दी जाती हैं ना की विशेष रूप से पूजा या साधना की।


21000

31000

माँ छिन्नमस्ता 5100 पाठ

माँ छिन्नमस्ता के रूप व स्वभाव को देखते हुए इनकी पूजा तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या अर्जित करने व अपने शत्रुओं का नाश करने के उद्देश्य से की जाती हैं। आम भक्तों को केवल इनकी उपासना करने की सलाह दी जाती हैं ना की विशेष रूप से पूजा या साधना की।


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61000

माँ छिन्नमस्ता सवा लाख जाप

माँ छिन्नमस्ता के रूप व स्वभाव को देखते हुए इनकी पूजा तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या अर्जित करने व अपने शत्रुओं का नाश करने के उद्देश्य से की जाती हैं। आम भक्तों को केवल इनकी उपासना करने की सलाह दी जाती हैं ना की विशेष रूप से पूजा या साधना की।


81000

100000

माँ छिन्नमस्ता सम्पूर्ण कवच

समस्त वस्तुएँ सवा लाख मंत्र एवं विशेष पूजन के द्वारा सिद्ध की गयी हैं ,इन समस्त वस्तुओं के उपयोग से आप अपने जीवन से संबंधित परेशानी को दूर कर सकते हैं ,ये वस्तुएँ आपके जीवन में उन्नति एवं उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करेंगी ।।


5100

11000

सर्व कार्य सिद्धि हेतु हवन

राजस यज्ञ सात्विक होता है , जिसे समस्त लोग कर सकते हैं , तामस यज्ञ सात्विक नहीं होता है तथा उसमें ड़लने वाली आहुति भी सात्विक नहीं होती हैं , तथा तानस यज्ञ जिसे तांत्रिक क्रिया से किया जाता है , इस यज्ञ में भी सात्विक आहुति नहीं ड़लती  ।।


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ज्योतिष (Astrology) एक प्राचीन विज्ञान है जो ग्रहों, नक्षत्रों, और अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति और उनके प्रभावों का अध्ययन करता है। यह विश्वास किया जाता है कि इन खगोलीय पिंडों की स्थिति और गति का मानव जीवन, प्रकृति और घटनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष के माध्यम से, हम इन प्रभावों को समझकर अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और विभिन्न समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।

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